खुजली इस बात की सूचक है कि रोग विषों ने आपके शरीर में डेरा बनाना आरंभ कर दिया है। होम्योपैथी में इस रोग विष को सोरा पुकारा जाता है। और सोरा को सभी रोगों का जनक माना जाता है।
शरीर में पहले पहल जब रोग विष जड़ जमाने लगते हैं तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उसे निकाल बाहर करने का काम आरंभ कर देती है। यही निष्कासन जब त्वचा पर प्रकट होता है तो उसे खुजली पुकारा जाता है। अब खुजली के रूप में हो रहे आरंभिक निष्कासनों को आप किस प्रकार लेते हैं इसी पर आपका स्वास्थ्य निर्भर करता है।
अगर गलती से आप अपनी त्वचा पर हो रहे सोरा विषों के स्फोट का गलत दवाओं ओर मरहमों से दबा देते हैं तो वही भविष्य में चिररोगों का कारक बनते हैं। इसलिए यह आम धारणा सही है कि खुजली होते ही लोग होम्योपैथी को याद करते हैं। क्यों कि वहां सोरा के इस विष को दबाने की जगह उसे उचित दवा से निष्कासित करने की कोशिश की जाती है। आगे विष के इन निष्कासनों के कारकों को पहचान कर उसे दूर करने की कोशिश होती है। यूं भी होम्योपैथी में रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की कोशिश की जाती है जिससे रोग विषों से शरीर खुद निजात पा सके।
सोरा जैसे सारे रोगविषों को दूर करने वाली मुख्य होम्यो दवा सल्फर है। इसकी क्रिया शरीर के भीतर से बाहर त्वचा पर होती है। बैंगन में सल्फर अधिक होता है इसलिए लोग खुजली में इससे परहेज करते हैं। होम्यो सिद्धांत में विष ही विष की दवा है इसलिए सल्फर की सूक्ष्म मात्र से सोरा का इलाज हो जाता है।
दरअसल शरीर की सल्फर शोषण की क्षमता जब खत्म हो जाती है तो शरीर को प्राप्त सल्फर को वह पचा नहीं पाता और वह शरीर पर सोरा विष के रूप में खुजली के रूप में प्रकट होता है। बैगन में सल्फर अधिक होने से उसे खाने पर शरीर ज्यादा सल्फर ले नहीं पाता इसलिए वह खुजली बढ़ाने में कारक बन जाता है।
सल्फर के प्रयोग से आरंभ में कभी - कभी त्वचा रोग बढ भी जाते हैं पर अगर चिकित्सक सही अनुपात में दवा के पावर का प्रयोग करे तो हमेशा ऐसा नहीं होता। इससे बचने के लिए अन्य सहयोगी दवाओं के प्रयोग से राहत मिलती है। ओर अंत में रोग जड़ से दूर हो पाता है।
सल्फर को रोगी को आप उसके लक्षणों से पहचान सकते हैं। सल्फर को रोगी गंदा रहता है और नहाने से बचता है। देर तक सीधा खड़ा रहने में उसे कष्ट होता है। सर्दी में सल्फर रोगी की नाक घर के भीतर बंद रहती है। ऐसे लक्षणों में खुजली ना होने पर भी सल्फर उसे आराम करता है। सल्फर के अलावे रूमेक्स, विन्क माइनर, ओलिएंडर, सोरिनम, रसटाक्स, सेलिनियम, डौलीकौस प्यूरिएंस, पल्साटिल्ला, बोविस्टा आदि से भी अपेक्षित परिणाम पाए जा सकते हैं बशर्ते उन्हें उनके मिलते लक्षणों के आधार पर दिया जाए। इसके साथ चिकित्सक की राय से खटाई, बैंगन और रूखे साबुन से बचा जाना चाहिए।
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किसी से भी हो कारण कोई भी हो पर इस तरह की नाराजगी से चिंतित केवल मां होती
थी। अ...
4 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
बहुत जानकारी से परिपूर्ण लेख है।धन्यवाद।
इतनी अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद ।
आप ने मेरा ब्लॉग देखा धन्यवाद । लेकिन आपको अक्षर क्यों नही दिखें । यह शिकायत तो पहले कभी नही आई ।
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